बदलाव अंतःप्रेरणा से हो या दबाव से ?
मध्यप्रदेश का एक वो छोटा सा गांव जहां पर एक आठ साल का बच्चा स्वच्छ भारत अभियान से जुड़कर अपने गांव को स्वच्छ बनाने का संकल्प करता है और वह उसमे सफल भी होता है | यहाँ समझने वाली बात ये है कि उस आठ साल के लड़के ने गांव वालों पर जबरदस्ती तो की नहीं होगी , बल्कि उसने उनलोगों के अंदर स्वछता की भावना को प्रोत्साहित किया होगा | एक आठ साल का बच्चा प्रेरणा दे सकता तो हम क्यों नहीं ? यह अत्यंत विचारणीय प्रश्न है |
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या हम अपने विचारों का दबाव डालें या सिर्फ सलाह दें ?
प्रत्येक इन्सान की एक निजता होती है जिसमे वह विचार करने , सामाजिक व्यवहार व जीवन जीने की पद्धति के लिए स्वतंत्र होता है | उस पर किसी प्रकार का वैचारिक दवाब नहीं डाला जा सकता है | वैसे भी प्रत्येक इंसान में स्वंतत्र आत्मा का निवास होता है फिर एक ईश्वरीय आत्मा को सिखानेवाले हम कौन होते है ? क्या हमारे पास इतना सामर्थ्य है की हम एक आत्मा को सीखा सकते हैं ?
परन्तु जब बात राष्ट्र के हित की हो तो वहां पर सलाह के अलावा बंदिशों का पालन भी न्यायोचित मांग का हिस्सा होती है | कभ-कभी निवेदन के अलावा उचित बंदिश भी सकारात्मक कदम होती है | जैसे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री ने निवेदन किया और उनके एक आह्वान पर पूरा भारत देश राष्ट्रधर्म के लिए उपवास रखा | यह उनका निवेदन था जिसको देश के प्रत्येक नागरिक चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम, गरीब हो या अमीर हर एक ने अपना धर्म समझा | उसी प्रकार कार्यपालिका (पुलिस प्रशासन/ राजस्व विभाग आदि) के द्वारा निर्धारित बंदिश भी समाज के सुचारु संचालन के लिए के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है |
आज समाज में इस तरह प्रचार किया जा रहा है कि, "सरकार उनलोगों को देशद्रोही मान रही है जो सरकार के विरोध में अपना विचार रख रहे हैं "| यहाँ सोचने वाली बात यह हैं कि सरकार ने ऐसा कोई भी विज्ञप्ति प्रस्तुत नहीं किया है जिसमें लिखा हो कि " सरकार उनलोगों को देशद्रोही मानेगी जो सरकार के विरोध में अपना विचार रखेंगे "|
कुछ लोग व उनके द्वारा संचालित संगठनों से यह प्रचारित किया जा रहा है कि, भारत में असहिष्णुता व्यापक हो रही है | आज के बुद्धिमान पत्रकारों, समाज सेवकों और कुछ लेखकों को देश में असहिष्णुता परिलक्षित है तो यह उस समय क्यों नहीं दिखा जब अफजल गुरु अंत्योष्टि में एक विशेष वर्ग के कुछ जन समूहों नें मोर्चा निकला और वहीं वर्ग मिसाइल मैन डॉ अब्दुल कालाम के ईश्वर विलीन होने पर शांत रहा | क्या अफजल गुरु का विचार कलाम जी के विचार से ज्यादा अच्छा था ? क्या उनलोगों को अफजल गुरु अंत्योष्टि जाना उचित था ?
हो सकता है कि "वन्देमातरम " या "भारत की जय " एक वाक्य है, लेकिन आपका नहीं बोलना यह भी तो प्रस्तुत कर सकता है कि भारत के प्रति, राष्ट्रवाद के प्रति या राष्ट्रीय एकता के प्रति आपका भावनात्मक विचार क्या है | मैं आप से निवेदन करता हूँ राष्ट्र को राष्ट्र रहने दें उसे सांप्रदायिक आखाड़ा बनाने का प्रयत्न न करें |
राजनितिक दलों से अनुरोध है कि राष्ट्र को सांप्रदायिक हवा देने का दुःसाहस न करें क्योंकि कल इसका आग पुरे देश को जला देगा आज़ादी के समय हम भारतीयों ने इसी सांप्रदायिकता के कारण लाखों अपनों को खोया है | आप के इस नीच राजनीति के कारण भारत का वो वर्ग भी सांप्रदायिक हिस्से का भाग होता जा रहा है जिसका मक़सद मात्र इन्सान बनके रहने का है और जिन लोगों ने इस भारतीय संस्कृति की ख़ूबसूरती को आज भी अपनी मानवता और अहिंसा से विश्व को मार्गदर्शन कर रहा है |
हमें जाति से ऊपर उठ कर एक राष्ट्र के रूप में खुद को परिभाषित करने का दौर सुरु करना चाहिए |
देश के प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का पालन दूसरों धर्म का सम्मान करते हुए करें अन्यथा गौरी लंकेस और दाभोलकर जैसे लोगों की हत्या, उसी प्रकार केरल जैसे आर एस एस कार्यकर्ता पर हमला होती रहेंगी और साम्प्रदायिक बदला का दौर चलता रहेगा |
बेहतर है कि हम ये विचार करें कि देश के लिए क्या दे सकते हैं ?
बाकी हम भारतीय में समर्थ है कि भारत को फिर सोने की चिड़िया बना सकते हैं |
"जय हिन्द जय भारत "
अब प्रश्न यह उठता है कि क्या हम अपने विचारों का दबाव डालें या सिर्फ सलाह दें ?
प्रत्येक इन्सान की एक निजता होती है जिसमे वह विचार करने , सामाजिक व्यवहार व जीवन जीने की पद्धति के लिए स्वतंत्र होता है | उस पर किसी प्रकार का वैचारिक दवाब नहीं डाला जा सकता है | वैसे भी प्रत्येक इंसान में स्वंतत्र आत्मा का निवास होता है फिर एक ईश्वरीय आत्मा को सिखानेवाले हम कौन होते है ? क्या हमारे पास इतना सामर्थ्य है की हम एक आत्मा को सीखा सकते हैं ?
परन्तु जब बात राष्ट्र के हित की हो तो वहां पर सलाह के अलावा बंदिशों का पालन भी न्यायोचित मांग का हिस्सा होती है | कभ-कभी निवेदन के अलावा उचित बंदिश भी सकारात्मक कदम होती है | जैसे भारत के पूर्व प्रधानमंत्री स्व. लालबहादुर शास्त्री ने निवेदन किया और उनके एक आह्वान पर पूरा भारत देश राष्ट्रधर्म के लिए उपवास रखा | यह उनका निवेदन था जिसको देश के प्रत्येक नागरिक चाहे हिन्दू हो या मुस्लिम, गरीब हो या अमीर हर एक ने अपना धर्म समझा | उसी प्रकार कार्यपालिका (पुलिस प्रशासन/ राजस्व विभाग आदि) के द्वारा निर्धारित बंदिश भी समाज के सुचारु संचालन के लिए के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है |
आज समाज में इस तरह प्रचार किया जा रहा है कि, "सरकार उनलोगों को देशद्रोही मान रही है जो सरकार के विरोध में अपना विचार रख रहे हैं "| यहाँ सोचने वाली बात यह हैं कि सरकार ने ऐसा कोई भी विज्ञप्ति प्रस्तुत नहीं किया है जिसमें लिखा हो कि " सरकार उनलोगों को देशद्रोही मानेगी जो सरकार के विरोध में अपना विचार रखेंगे "|
कुछ लोग व उनके द्वारा संचालित संगठनों से यह प्रचारित किया जा रहा है कि, भारत में असहिष्णुता व्यापक हो रही है | आज के बुद्धिमान पत्रकारों, समाज सेवकों और कुछ लेखकों को देश में असहिष्णुता परिलक्षित है तो यह उस समय क्यों नहीं दिखा जब अफजल गुरु अंत्योष्टि में एक विशेष वर्ग के कुछ जन समूहों नें मोर्चा निकला और वहीं वर्ग मिसाइल मैन डॉ अब्दुल कालाम के ईश्वर विलीन होने पर शांत रहा | क्या अफजल गुरु का विचार कलाम जी के विचार से ज्यादा अच्छा था ? क्या उनलोगों को अफजल गुरु अंत्योष्टि जाना उचित था ?
हो सकता है कि "वन्देमातरम " या "भारत की जय " एक वाक्य है, लेकिन आपका नहीं बोलना यह भी तो प्रस्तुत कर सकता है कि भारत के प्रति, राष्ट्रवाद के प्रति या राष्ट्रीय एकता के प्रति आपका भावनात्मक विचार क्या है | मैं आप से निवेदन करता हूँ राष्ट्र को राष्ट्र रहने दें उसे सांप्रदायिक आखाड़ा बनाने का प्रयत्न न करें |
राजनितिक दलों से अनुरोध है कि राष्ट्र को सांप्रदायिक हवा देने का दुःसाहस न करें क्योंकि कल इसका आग पुरे देश को जला देगा आज़ादी के समय हम भारतीयों ने इसी सांप्रदायिकता के कारण लाखों अपनों को खोया है | आप के इस नीच राजनीति के कारण भारत का वो वर्ग भी सांप्रदायिक हिस्से का भाग होता जा रहा है जिसका मक़सद मात्र इन्सान बनके रहने का है और जिन लोगों ने इस भारतीय संस्कृति की ख़ूबसूरती को आज भी अपनी मानवता और अहिंसा से विश्व को मार्गदर्शन कर रहा है |
हमें जाति से ऊपर उठ कर एक राष्ट्र के रूप में खुद को परिभाषित करने का दौर सुरु करना चाहिए |
देश के प्रत्येक नागरिक को अपने धर्म का पालन दूसरों धर्म का सम्मान करते हुए करें अन्यथा गौरी लंकेस और दाभोलकर जैसे लोगों की हत्या, उसी प्रकार केरल जैसे आर एस एस कार्यकर्ता पर हमला होती रहेंगी और साम्प्रदायिक बदला का दौर चलता रहेगा |
बेहतर है कि हम ये विचार करें कि देश के लिए क्या दे सकते हैं ?
बाकी हम भारतीय में समर्थ है कि भारत को फिर सोने की चिड़िया बना सकते हैं |
"जय हिन्द जय भारत "
Jai hind Jai bharat
ReplyDeletefeeling happy by reading this again.
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