एक और दामिनी !

भारत के धरती की जन्नत कही जाने वाली कश्मीर जो एक तरफ हिमालय से रक्षित है तो दूसरी तरफ पिर पंजाल की घाटी जो ना जाने कितनी पीड़ादायी घटनाओं की साक्षी रही है , आज फिर मानवीयता को शर्मसार और मानवीय हृदय पर कुठाराघात करने वाली अत्यन्त निंदनीय एवं पीड़ादायी घटना का साक्षीदार हुई। एक मासूम बच्ची जिसने ठीक से अपने जीवन का दशांस भी पूरा नही कर पायी थी, एक छुद्र वासना और वैचारिक कुपोषण का शिकार हो गई। वो माँ जिसने उसे जन्म दिया, वो पिता जिसने उस लड़की की पालन-रक्षण के लिये अपने सपनों को कुर्बान किया या खुद वो बच्ची जिस पर ये सब अत्याचार हुआ ! उसकी क्या गलती थी ?
आज पूरा भारत रो रहा है ! वही भारत जो 2012 मे एक बार रोया था लेकिन मोमबत्ती की आग क्या उस माँ की विरह वेदना को जला पायेगी ?
वो पिता अब अपना प्यार भरा स्नेह किसपर लुटाएंगे ?
खैर! यह तो भावनात्मक बातें है हम जैसे 2012 को भूल गये वैसे कुछ दिन बाद इसे भी भूल जाएंगे!
लेकिन उस विचार का क्या होगा जिसकी वजह से ना जाने कितनी दामिनी हर रोज बनायी जाती है।
इस घटना के बाद अब तो हम पुलिस के पास भी जाने में हजार बार सोचेंगे।
मंदिर जो ईश्वर का निवास स्थान माना जाता है, आज उसी ईश्वर के घर में उसी की बेटी के साथ ऐसा जघन्य अपराध को अंजाम दिया गया फिर वो भगवान कुछ बोला क्यो नही ? वो चाहता तो उसे बचा सकता था? या वही सब कुछ कर रहा था?
इन यक्ष प्रश्नों के उत्तर चाहे जो भी हो लेकिन आज मानवीयता एक बार फिर न्याय के कठघरे में न्याय की भीख मांगती दिख रही है।
आज हमे यह प्रश्न खुद से पूछना होगा कि , कही दिल्ली में या कश्मीर में या दुनिया के किसी भी कोने में होने वाली इस तरह की घटनाओ के ज़िम्मेवार हम भी तो नही ?
आज एक बार फिर हमे अपने समाज के नैतिक बहाव और अपने संस्कारों का पुनरावलोकन करना चाहिए जो हमे इस अंधकारमयी मार्ग पर ले कर जा रहे है।
मैं भारत का एक आम नागरिक होने के नाते सरकार से यह निवेदन करता हूं कि उन अपराधीयों के लिए मौत भी बहुत छोटी सजा होगी, उनके लिए ऐसी अविलंब सजा का निर्धारण हो जो उनकी जीवन को नर्कमयी बना दे ।


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