आदत वहीं है | Aadat Wahi hai
उन्हें सर उठाने की आदत वहीं है,
हमें सर झुकाने की आदत वहीं है,
सितम गर सितम कर चला दिल पर खंजर,
हमें जख्म खाने की आदत वहीं है।
नहीं डर की दिल पर रहेगा ना काबू,
इसे टूट जाने की आदत वहीं है,
गीले शिकवे होठों पर आए भी तो कैसे,
हमें चुप लगाने की आदत वहीं है।
हमें आ गया अब संभल कर भी चलना,
मगर लड़खड़ाने की आदत वहीं है,
गमों का ये बोझ अब बढ़े भी तो क्या गम,
हमें मुस्कुराने की आदत वहीं है।
अभी तक भले हो, बुरे लोग सबनम,
हमारा जमाने की आदत वहीं है,
मैंने हर ख़्वाब मोड़ा तेरे ख्वाब तक,
पर तेरे आजमाने आदत वहीं है।
हमें सर झुकाने की आदत वहीं है,
सितम गर सितम कर चला दिल पर खंजर,
हमें जख्म खाने की आदत वहीं है।
नहीं डर की दिल पर रहेगा ना काबू,
इसे टूट जाने की आदत वहीं है,
गीले शिकवे होठों पर आए भी तो कैसे,
हमें चुप लगाने की आदत वहीं है।
हमें आ गया अब संभल कर भी चलना,
मगर लड़खड़ाने की आदत वहीं है,
गमों का ये बोझ अब बढ़े भी तो क्या गम,
हमें मुस्कुराने की आदत वहीं है।
अभी तक भले हो, बुरे लोग सबनम,
हमारा जमाने की आदत वहीं है,
मैंने हर ख़्वाब मोड़ा तेरे ख्वाब तक,
पर तेरे आजमाने आदत वहीं है।
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